kanchan singla

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हम सब मुसाफिर ही तो हैं..!!

हम सब मुसाफिर ही तो हैं 
निरंतर सफर करते रहते हैं
जन्म से लेकर मृत्यु तक 
जीवन भर हम मुसाफिर बनकर ही जीते हैं
कभी ख्वाहिशों के पीछे भागते हैं
कभी जरूरतों के पीछे भागते हैं 
कोई रोटी की इच्छा में दिन रात काम करता है
कोई अपनी धन संपदा बढ़ाने को तत्पर रहता है।।

हम अक्सर भागते ही रहते हैं
एक जगह से दूसरी जगह पर
उस भागने के बीच में जो सफर तय होता है
हम उस सफर के मुसाफिर होते हैं ।।

हम सब मुसाफिर ही हैं और
सफर तय करना ही मुसाफिरों का काम होता है 
राहें अक्सर मुड़ाव छोड़ देती हैं
तय हमें करना होता है किस राह जाएं
एक राह जो सफेद रोशनी से जाकर मिलती है
दूसरी राह जो गहरे अंधेरे की ओर ले जाती है
हम जिस भी राह को चुनते हैं
उसी राह के मुसाफिर बन जाते हैं ।।

अंत में जब यह मुसाफिर थक जाता है
वह कहीं ठहरना चाहता है
वह अपने चुने हुए सफर की तरफ देखता है
तब पाता है खुद को उनकी शरण में
वो करते हैं हिसाब उसके कर्मो का
यही कर्मफल ही मुसाफिर का अंतिम छोर कहलाता है
ऐसा अंतिम छोर जहां उसका सफर खत्म हो जाता है
यही ठहराव ही मुसाफिर की मंजिल होती है ।।


# कॉपीराइट_लेखिका - कंचन सिंगला©®
लेखनी प्रतियोगिता -26-Jul-2022

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10 Comments

Aniya Rahman

27-Jul-2022 10:37 PM

Nyc

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Rahman

27-Jul-2022 04:57 PM

Bhut khub

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Seema Priyadarshini sahay

27-Jul-2022 04:41 PM

बेहतरीन रचना

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